Thu Apr 06 2023,05:36 PM

प्रश्न और उत्तर

आप धर्म आधारित नैतिक मूल्यों के ख़िलाफ़ क्यों हैं ? क्या समाज को अनुशासित रखने में इनका बहुत बड़ा योगदान नहीं है ?

किसी भी धर्म में सभी के लिए हमेशा के लिए एक ही आचार संहिता तय कर दी जाती है, जबकि जीवन की परिस्थितियां देश और काल से प्रभावित होती हैं l उदाहरण के लिए बहुत से धार्मिक प्रावधान व अनुष्ठान गर्म एवं ठंडी दोनों जलवायु में ठीक नहीं बैठते, जैसे कि रमज़ान के दौरान किए जाने वाले रोज़े l उतरी ध्रुव के पास के इलाकों में, जहां गर्मी के मौसम में दिन 20 से 24 घंटे का हो सकता है, किसी से के नियमों के पालन की अपेक्षा करना अमानवीय है l धर्म निःसंदेह कुछ लोगों को व्यक्तिगत सांत्वना प्रदान कर सकता है, विशेष रूप से अवसाद यानी डिप्रेशन के दिनों में l अधिकांश लोग समस्याओं के निदान को भगवान पर छोड़ देते हैं l कभी-कभी इस प्रकार की सांत्वना, भरोसे और विश्वास से उन्हें लाभ भी हो सकता है l किंतु समाज के स्तर, पर धर्म के कारण लाभ से अधिक नुकसान ही होता है l धर्म लोगों को आपस में बांटकर संकट पैदा करते हैं l उनकी नैतिकता अधिकतर अत्यधिक संकुचित होती है एवं हजारों साल पहले के सीमित ज्ञान और प्राचीन सामाजिक परिवेश पर आधारित होती है ल दुनिया और समाज, विज्ञान के युग में आज बहुत आगे बढ़ चुके हैं l अब बेहतर, अधिक करुणामय, संवेदना-पूर्ण, हितकारी और अधिक तर्कसंगत नैतिकता की आवश्यकता है , जो कि बदले हुए परिवेश के साथ तथा विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में अधिक अच्छा सामंजस्य बिठा सके l आधुनिक नैतिकता मानव को केंद्र में रखकर तय की जानी चाहिए, न कि काल्पनिक शक्तियों या कतिपय समुदायों को l मानवतावाद हमें नैतिकता का एक बेहतर विकल्प देता है l

मानवतावाद एक गैर-धार्मिक नैतिक दृष्टिकोण है, जो कि उन मानवीय मूल्यों पर आधारित है जो मानव मात्र के हित में हैं l यह कोई खास सिद्धांत या नियमों का संग्रह नहीं है l यह एक शुरुआती बिंदु है l इसका मूल विचार यह है कि नैतिकता मानव अनुभव के तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए l कुछ लोगों को नैतिकता के विषय में पारंपरिक दृष्टिकोण अधिक पसंद हो सकता है, जबकि दूसरों का दृष्टिकोण अधिक क्रांतिकारी हो सकता है l दोनों दशाओं में मुख्य रूप से दो शर्तें होनी चाहियें - पहली यह कि किसी की पसंद दूसरों को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से नहीं हो, और दूसरी यह कि किसी के दृष्टिकोण को दूसरों द्वारा चुनौती दिए जाने पर उसके पास अपने दृष्टिकोण का बचाव करने के लिए ठोस और विश्वसनीय तर्क हों l मानव को अपने चुनाव के अनुसार जीवन को जीने का अधिकार होना चाहिए, न कि केवल विरासत में मिली परंपराओं पर आधारित सिद्धांतों के अनुसार, या जिस समुदाय में वह पैदा होता है उसकी धार्मिक परंपराओं के अनुसार l धार्मिक नैतिकता मानती है कि सभी के लिए एक ही महान सत्य है और जीने का एक ही सही सही तरीका है l धार्मिक नैतिकता के साथ एक और बड़ा दोष यह है कि यदि आप इसके तरीकों को नहीं मानते हैं तो आप को दंडित किया जाता है या आपका बहिष्कार किया जाता है l सजा का ख़तरा नैतिक व्यवहार के लिए पर्याप्त तार्किक आधार नहीं है और नैतिकता कि परिभाषा में फिट नहीं बैठता l

नास्तिकों की नैतिकता का आधार क्या है ?

- नास्तिकों की नैतिकता मानवीय मूल्यों पर आधारित होती है, न कि किसी दैवीय शक्ति के भय के कारण l वे अच्छे कार्य करना चाहते हैं, क्योंकि वे ऐसा करने को अच्छा मानते हैं l वे मानते हैं कि भूतकाल से सीखा जा सकता है पर उसे वापस नहीं लाया जा सकता l नास्तिक लोग वर्तमान और साथ ही भविष्य की बेहतरी के लिए काम करते हैं l

नास्तिकता अपने आप में कोई लक्ष्य नहीं है l परंतु, यह एक ऐसा सुरक्षित आधार है जिससे मानव जाति अपने अंदर की सभी बुराइयों पर प्रभावशाली तरीके से चोट कर सकती है और एक बेहतर दुनिया के लिए प्रयास कर सकती है l नास्तिक लोग वास्तविकता को समझने के लिए केवल वैज्ञानिक पद्धति को ही तर्कसंगत साधन मानते हैं l सभी विचारों की समालोचना और उन पर सवाल करना तथा उन्हें तथ्यों के आधार पर परखना हमें सत्य की खोज की ओर ले जाता है l

धर्म के बिना मनुष्य विकास की कोशिश कैसे करेगा ?

इस बात का ज्ञान कि समस्याएं किसी दैवीय या अलौकिक शक्ति द्वारा आदेशित नहीं हैं, और उनका समाधान खोजा जा सकता है, मनुष्य को और अधिक प्रयास करने के लिए प्रेरित करता है l विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास इसी प्रकार के विश्वास से हुआ है l

धर्म के बिना जीवन कैसा होगा ?

यह बहुत आसान है I नास्तिक लोग भी खुशी से रहते हैं I हम इस विशाल और प्राकृतिक विश्व का बहुत छोटा सा हिस्सा हैं I हम इसकी विशालता और विस्तार से विस्मित होने के साथ-साथ अपने आपको इसमें पाकर आनंदित भी होते हैं I हम इस विशाल ब्रह्माण्ड का एक सक्रिय अंग हैं - केवल जड़ या निष्क्रिय भाग नहीं I हम भी उन्हीं तत्त्वों से बने हैं जिनसे मछलियां , तितलियाँ ,बड़े बरगद या अनेकों तारामंडल I हममें और अन्य जानवरों में फर्क इतना है की हमारा दिमाग बहुत बड़ा है और विकसित भी I हम बाकी जानवरों से ज़्यादा सोच सकते हैं, सवाल करते हैं और उनका जवाब ढूँढ़ते हैं I

हम एक दूसरे को मानवीय दृष्टि से देखते हैं - एक ही मनुष्य जाति के हिस्से या एक ही मानव समाज के सदस्य के रूप में - समान गरिमा के साथ I हम मानते हैं कि सभी मानव एक सी संवेदना और सम्मान के हक़दार हैं I हम भी अपने निकट एवं प्रिय सम्बन्धियों और दोस्तों से प्यार करते हैं तथा इस विश्व में प्राप्त इस छोटे से समय की अपनी उपस्थिति को बहुत मूल्यवान समझते हैं I हम इस छोटे से जीवन का बहुत विवेकपूर्वक और संजोकर उपयोग करते हैं I

हम समस्याओं का सामना करने, अपने जीवन को सुधारने और सबका बेहतर कल्याण सुनिश्चित करने के लिए अब तक आविष्कृत और उपलब्ध सबसे सफल तरीकों और उपायों का विज्ञान, परीक्षण, तर्क एवं स्वतंत्र जाँच-पड़ताल द्वारा इस्तेमाल करते हैं I हम अज्ञात (unknown ) से डरने के बजाय खोज में विश्वास रखते हैं और अब तक किये जा चुके अद्भुत अविष्कारों की मदद लेते हैं I

हम जानते हैं कि एक दिन हमारे जीवन समाप्त हो जायेंगे , हम नहीं रहेंगे I पर हमें यह जानकर बहुत आशा और आनंद प्राप्त होता है कि जीवन का यह क्रम चलता रहेगा I साथ ही हम यह स्वीकार करते हैं कि शायद कुछ हज़ार वर्षों के बाद मानव जाति का भी अंत संभव ही नहीं, अवश्यम्भावी है I

हम अपने आपको इस आलीशान और निरंतर विकासशील जीवंत इतिहास की करोड़ों-अरबों कहानियों में से एक बहुत छोटी सी कथा के रूप में देखते हैं - और सर्वोपरि - हम अपने आप को इसका एक हिस्सा पाकर अत्यधिक आनंद का अनुभव करते हैं I

हम हैं धर्म-रहित मानवतावादी और हम बिना किसी धर्म के खुशी से रह रहे हैं I

क्या मृत्यु के बाद नया जीवन मिलता है ?

इस विषय पर एक जांच शुरू करने से पहले हमें यह समझना होगा कि हम जीवन के बारे में क्या जानते हैं।

विज्ञान ने स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया है कि हम होमो-सेपियन्स लाखों वर्षों के विकास की अब तक की एक आखिरी पायदान हैं। यह भी पता चला है कि हमारी प्रजाति अपने आप में विकास का अंतिम परिणाम नहीं है , हो सकता है कि हमसे कोई बेहतर प्रजाति भी आ जाये। हमारे ग्रह पर एक करोड़ से अधिक प्रजातियां हैं, जिनमें से मानव काफी देर से आया है। हर प्राणी अपने आपको प्रकृति इस प्रकार से ढालने में समर्थ होता है जिससे वह अधिक समय तक पृथ्वी पर बना रहे I कई प्राणी करोड़ों वर्षों तक पृथ्वी पर रह रहे हैं I कुछ तो अब तक उनके मूल स्वरूप में भी विद्यमान हैं।

विकासवादी सिद्धांत में सबसे महत्वपूर्ण यह तथ्य है कि सभी प्रजातियों में से हर प्राणी अंततः एक दिन मर जाएगा और प्रजातियां खुद भी एक दिन हमेशा के लिए गायब हो जाएंगी। सभी प्राणियों का डीएनए इसी प्रक्रिया के लिए बना है I प्रत्येक नये जीवन में कुछ बदलाव की संभावनाएं रहती हैं जिनसे वह पर्यावरण और / या सामाजिक संरचना की निरंतर बदलती परिस्थितियों में अपने को ढालकर अपने जीवित रहने कि संभावनाओं को बढ़ा सके I मृत्यु वह इंजिन है जो निरंतर परिवर्तनशीलता के द्वारा अस्तित्व को बेहतर रूप देता रहता है। यह एक आवश्यक एवं प्राकृतिक प्रक्रिया है।

आप पुनर्जन्म के विचार का खंडन क्यों करते हैं ?

धर्म किसी भी प्रकार के वस्तुनिष्ठ सत्य का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं और न ही अपने दावों का कोई सबूत देते हैं I इसलिए उनके किसी भी "अलौकिक" तत्व पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

मानव और गैर-मानव दोनों प्रकार के प्राणी अरबों-खरबों की संख्या में पैदा होते रहे हैं, और कुछ समय अस्तित्व में रहकर मरते रहे हैं। इस बात का कोई सबूत नहीं है कि कोई भी इस धरती पर मरने के बाद दुबारा लौटा हो I इस बारे में कुछ काल्पनिक कहानियों को छोड़कर कोई उदाहरण नहीं हैं I

एक तो इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं है कि मरने के बाद भी हम किसी न किसी रूप में रहेंगे ; दूसरे, किस रूप में रहेंगे - इस बात की भी कोई व्याख्या नहीं है I यदि यह मान भी लिया जाये कि हम इस जीवन के बाद भी अस्तित्व में होंगे , तो किस रूप में होंगे ? क्या हमारे पास मृत्यु के बाद में शरीर और मन दोनों होंगे , यदि हाँ तो कैसे होंगे I स्वास्थ्य कैसा होगा ? क्या अच्छा स्वास्थ्य होगा, भले ही हम बीमारी या वृद्धावस्था के कारण मरे हों I यह बुढ़ापे के समय का शरीर और मन होगा, या जवानी का ? क्या वहां कोई शरीर नहीं होगा और सिर्फ मन होगा ? एक मन के लिए एक जीवित मस्तिष्क की आवश्यकता होती है और मस्तिष्क के लिए एक शरीर भी चाहिए ? क्या कोई निराकार अस्तित्व होगा जो पूरी तरह से कुछ अलग ही मामला होगा ? महज इसलिए कि हम इन संभावनाओं के बारे में सोच सकते हैं , उनमें से कोई भी विकल्प या कॉम्बिनेशन, संभव या विश्वसनीय नहीं हो जाता I

जीवन के बाद किसी भी रूप में अस्तित्व में रहने के विचार, कोरे विचार हैं। ये हमारे शाश्वत जीवन की इच्छा को ध्यान में रखते हुए धर्म के प्रणेताओं द्वारा गढ़े गए अन्धविश्वास हैं I भले ही धर्म हमारे सामाजिक विकास का एक आवश्यक हिस्सा रहा है, लेकिन अब हम एक ऐसे समय में पहुंच गए हैं जब अंधविश्वास के बजाय तर्क का उपयोग करके हम इस जीवन को खुशगवार और अधिक सुखी बना सकते हैं I युगों से चली आ रही शिक्षाओं ने हमें कुछ ऐसा चाहने के लिए प्रेरित किया है कि जो अभी तक कभी नहीं मिला है - वो है शाश्वत जीवन। हो सकता है कि एक दिन विज्ञान इस "समस्या" को कुछ हद तक हल कर दे और शाश्वत नहीं तो कम से कम एक अधिक लम्बा जीवन जीने के साधन उपलब्ध करा दे l किन्तु अभी तो फिलहाल, एक न एक दिन, हम सभी को मरना ही होगा और वही हमारा अंत है - अलविदा और सदा के लिए ! यह अफसोस की बात है पर एक कड़वा सच है I

यह एक दुख की बात है कि धर्म अभी भी इतने सारे लोगों को यह विश्वास दिलाकर बेवकूफ़ बना रहे हैं कि वे या तो स्वर्ग में जाएंगे (यदि वे अच्छे हैं ???) या नरक में (यदि वे ख़राब हैं ???) I धर्म इसके द्वारा मनुष्यों को प्राप्त इस अकेले जीवन को इन बेमतलब और काल्पनिक बातों में उलझाकर बर्बाद करवा रहे हैं I इसी लालच के कारण (मरने के बाद के अच्छे काल्पनिक जीवन की आशा में) बहुत से लोग वर्तमान जीवन को विकृत बना लेते हैं या इसकी बेहतरी के पर्याप्त प्रयास नहीं करते I कभी-कभी तो लोग इसके लालच में अपनी तथा दूसरों की जान भी ले लेते हैं I इसी लालच में धर्म आत्मघाती आतंकवादियों को पैदा करने का सबसे बड़ा माध्यम बन गया है I

क्या ईश्वर इंसानों को विपदा से बचाएगा ?

डायनासोरों ने इस ग्रह पर १६ करोड़ वर्षों तक शासन किया। होमो-सेपियन्स बमुश्किल 2,00,000 साल पहले पैदा हुए । मानव सभ्यता के सबसे पुराने निशान 10,000 साल से अधिक पुराने नहीं हैं। प्रजातियों का विलुप्त हो जाना पृथ्वी पर एक असामान्य घटना नहीं है। मनुष्य के प्रादुर्भाव के बाद प्रकृति में मौजूद प्राणियों में से 99% से अधिक विलुप्त हो चुके हैं। यदि शक्तिशाली डायनासोर जीवित नहीं रहे, तो मानव जाति कितने समय तक जीवित रहेगी - यह एक खुला प्रश्न है। यहां तक कि अगर ईश्वर मनुष्य के आगमन से पहले मौजूद थे, तो उन्होंने इन प्रजातियों को विलुप्त होने से क्यों नहीं बचाया। क्या ईश्वर का मतलब केवल इंसानों से है ? क्या अन्य जीवन के रूप या प्राणी इसकी जिम्मेदारी नहीं हैं ? इसने अन्य जीवन-रूपों की मदद क्यों नहीं की ? क्या ये उनकी रचनाएँ नहीं थीं ? वह इतना पक्षपातपूर्ण और एकतरफा क्यों था ? उसने डायनासोर जैसे अन्य जीवन रूपों के लिए स्वर्ग या नरक क्यों नहीं बनाया ?

यहां तक कि अगर यह सर्वशक्तिमान सत्ता केवल मनुष्यों के लिए है, तो मानव जाति को प्रकट और सभ्य होने में इतना समय क्यों लगा ? ईश्वर ने उन विशेष धर्मों के आगमन से पहले तब तक इंतजार क्यों किया जब तक कि वे दूत या पैगम्बर पैदा नहीं हो गये ? क्या उन विभिन्न दूतों के माध्यम से दिया जाने वाला उसका अंतिम संदेश तैयार नहीं हो पाया था ? इन संदेशों से पहले वह कहां था ? उसने ये संदेश केवल मनुष्यों को ही क्यों दिये ? क्या ये सन्देश आने वाले सारे समय के लिए अंतकाल तक लागू हैं या केवल क़यामत या प्रलय इत्यादि तक ? क्या ये ईश्वर केवल मनुष्यों की रक्षा और संरक्षण करेगा ? क्या इस ईश्वर ने केवल मनुष्यों को इस ग्रह पर शासन करने और अन्य जीवन-रूपों (प्राणियों) को नष्ट करने की अनुमति दी है ? क्या वे प्राणी भी उसकी संतानें या कृतियां नहीं थीं ? क्या वह भविष्य में किसी अन्य जीवन-रूप (प्राणी) का आविष्कार करेगा या, क्या इस ग्रह पर जीवन का समूल अंत हो जायेगा ?यदि मनुष्य-जाति जलवायु परिवर्तन, ग्रहों पर होने वाले परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं जैसे अस्तित्वपरक खतरों के कारण नष्ट हो जाती है तो भगवान किसके लिए काम करेगा ?

ऐसा लगता है कि जो लोग धर्म में विश्वास करते हैं या किसी भी धर्म का प्रचार करते हैं, वे सभी तर्क और तर्कसंगत सोच को भूल जाते हैं। समय की मांग है कि लोग विवेक के आधार पर मानव समाज में वैज्ञानिक और तर्कसंगत सोच तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ें। हमारा मत है कि शिक्षा प्रणाली में ऐसे विषयों को शामिल किया जाना चाहिए जो लोगों की तार्किक रूप से सोचने में मदद करें और अंधविश्वास और अंध-भक्ति के अंधेरे से बाहर निकालें l मनुष्य अपने भविष्य को वैज्ञानिक सोच से सुधार सकता है। मानव अन्य जीवन-रूपों (प्राणियों) और प्रकृति के साथ सामंजस्य और सद्भाव स्थापित करके आने वाली सदियों में मानव जाति के लिए इस ग्रह को और भी बेहतर बना सकता है । यह घोर अज्ञानता का सूचक है कि हम इसके बजाय काल्पनिक मुद्दों में अपना समय और ऊर्जा बर्बाद किये जा रहे हैं, जिनमें से कई पूरी तरह से अनावश्यक हैं।

आप भविष्य के लिए क्या रास्ता सुझाते हैं ?

धर्म के स्थान पर जीवन में विज्ञान और तार्किक सोच का स्थान सुनिश्चित करना होगा l ऐसी दुनिया का निर्माण जिसमें अंधविश्वास, छद्म विज्ञान, या पूर्वाग्रह के बजाय साक्ष्य, विज्ञान, और करुणा सार्वजनिक नीति का मार्गदर्शन करते हों l

एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए, हमें अपने विवेक और दिल की आवाज़ का उपयोग करने की आवश्यकता है। एक बेहतर सभ्यता के लिए, हमारे सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें विज्ञान के साधनों का उपयोग प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा की गारंटी, करुणा और सम्मान के साथ करने की आवश्यकता है।

आगे बढ़ने के लिए, हमें पुराने अंधविश्वासों, पूर्वाग्रहों और जादुई सोच को त्यागना होगा और तथ्यों, सबूतों और आलोचनात्मक सोच को गले लगाना होगा।

हम धर्म और छद्म विज्ञान की कट्टरता और हठधर्मिता से मुक्त समाज को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं l हमारा लक्ष्य है - ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी तथा मानव-बुद्धि की रचनात्मकता की असीम क्षमता से प्रेरित समाज; एक ऐसा समाज जिसमें मान्यताओं को बजाय लोगों को अधिक सम्मान दिया जाता है , जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार सभी को बिना भेदभाव के मिलता है, और सभी विचार तर्क की जांच पर परखे जाते हैं ।

क्या नास्तिकता नैतिक व्यवहार की गारंटी है ?

हम अच्छी तरह से जानते हैं कि धर्म नैतिक व्यवहार को सुनिश्चित नहीं करता है जैसा कि तानाशाहों और धर्म के ठेकेदारों ने दिखाया है। बेशक नास्तिकता भी अपने आप में समाज को पूर्णतया स्वीकार्य व्यवहार की गारंटी नहीं देती है और नास्तिक भी अनैतिक हो सकते हैं । पर नास्तिकता तर्क पर आधारित है और यह महत्वपूर्ण तत्त्व है। जब कोई व्यक्ति यह स्वीकार करता है कि यह एकमात्र ही ऐसा जीवन है जो उसे कभी मिलेगा, और उसे पता चलता है कि जिस समाज में उसे यह जीवन बिताना है वह बेहतर हो सकता है, तो वह इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि उसे उस समाज को यथासंभव सर्वोत्तम बनाने के लिए अपना योगदान देना चाहिए ।

कई सामाजिक समस्याएं सार्वभौमिक हैं । कुछ समस्याओं को एक व्यक्ति या कुछ लोगों द्वारा हल किया जा सकता है लेकिन अधिकांश को एक केंद्रित और समर्पित समूह की आवश्यकता होगी। कुछ समस्याएं जैसे कि वर्तमान जनसंख्या विस्फोट और पर्यावरण हमारे ग्रह के लिए एक अस्तित्व- परक संकट बन चुके हैं l इनके लिए सामूहिक वैश्विक प्रयासों की आवश्यकता है l नास्तिक, इस तथ्य के प्रति जागरूक हैं कि उनके पास केवल यहीं और बस वर्तमान में, जीवन की एक छोटी सी ही अवधि है, जिसमें इनका हल खोजना होगा l थॉमस पेन के शब्दों में: "हम सुधार के लिए जीते हैं या हम व्यर्थ में जीते हैं"।

क्या भगवान दयालु है ?

अगर 'ईश्वर' ने मनुष्य का निर्माण किया होता, तो उसकी विभिन्न कृतियों में इतनी गैर बराबरी नहीं होती। आमतौर पर माता-पिता अपने सभी बच्चों को समान शिक्षा, अवसर, धन आदि प्रदान करते हैं। वह कैसा परम पिता 'ईश्वर' है , जो मानव जाति के सर्वोच्च जनक होने के नाते इस बात की परवाह नहीं करता कि स्वास्थ्य, धन, सुंदरता आदि उसके बच्चों में समान रूप से वितरित हैं या नहीं ? केवल कुछ लोग ही स्वस्थ क्यों हैं, जबकि अन्य बीमार हैं ? केवल कुछ ही लोग अमीर हैं और विशाल बहुमत गरीब हैं ? केवल कुछ ही लोग खुश क्यों हैं ? बहुत से लोग बचपन में ही क्यों मर जाते हैं ? कुछ लोग इतने कष्ट क्यों भुगतते हैं ? ऐसे लोग हैं जो अपनी रोटी भी नहीं कमा सकते। इसके विपरीत वे लोग हैं जिन्होंने लाखों के लिए पर्याप्त संसाधन जुटाए हैं। कोई कैसे यह कल्पना कर सकता है कि एक ही 'भगवान' ने बिल गेट्स और गरीब जनता दोनों को झुग्गी-झोपड़ियों में रहकर बनाया है ?

मानव दुख एक निर्माता के अस्तित्व को चुनौती देता है। वैसे मानव जाति को बनाने और शासन करने की एक दयालु, न्यायपूर्ण और प्रेम करने वाली शक्ति होनी चाहिये थी, दुनिया में असमानता, शोषण, बीमारी और अन्याय के लिए कोई जगह नहीं होनी थी। आश्चर्यजनक रूप से, मानव जाति को अनेक दुखों का सामना करना पड़ा और अभी भी करना पड़ रहा है। फिर भी, वे अभी भी अपने 'देवताओं' को सर्वशक्तिमान, दयालु और सहायक मानते हैं I यह अन्धविश्वास नहीं तो फिर क्या है ? प्राचीन धर्मग्रंथों ने मानव जाति की वैज्ञानिक प्रगति को इन्हीं अंधविश्वासों के जरिये लम्बे समय तक स्थगित रखा ।

यदि धर्म नहीं है तो नैतिक मूल्य कैसे बनते हैं ?

नैतिक मूल्य, मानव की ज़रूरतों और हितों के अनुसार अनुभवों के आधार पर बनते हैं I मानवतावादी इन मूल्यों को मनुष्य के कल्याण के लिए , मानव की तत्कालीन परिस्थितियों , हितों , रुचियों और सरोकारों की बुनियाद पर खड़ा करते हैं I वे केवल मानव प्रजाति तक सीमित नहीं रहते , बल्कि वे नैतिकता की अवधारणा का विस्तार संपूर्ण विश्व के स्तर पर ले जाते हैं जिसमें अन्य प्रजातियां एवं पर्यावरण शमिल हैं I मानवतावादी मानते हैं कि हर व्यक्ति में अन्तर्निहित गुण , योग्यता और मर्यादा होती है, और उसे ज़िम्मेदारी के साथ अपने रास्ते का चुनाव करने का अधिकार है I

आप आत्मा को क्यों नकारते हैं ?

यदि मानव की क्लोनिंग पर से प्रतिबन्ध हट गए तो जो प्रक्रिया एक मानव-क्लोन का नेतृत्व करेगी, वह आत्माओं में विश्वास करने वालों के लिए एक बहुत बड़ी दुविधा पेश करेगी और शायद इसीलिए धर्म शास्त्री और धर्म-गुरु क्लोनिंग के ख़िलाफ़ हैं I आत्मा की एक आधुनिक अवधारणा इसे चेतन मन की बराबरी पर लाती है, लेकिन यह भी उतना ही त्रुटिपूर्ण है I जब शरीर मरता है तो मस्तिष्क भी मर जाता है I मस्तिष्क पर निर्भर होने के कारण चेतन मन भी मौजूद नहीं रहता । मस्तिष्क या मन मनुष्य के पूरे जीवनकाल में विकसित होता रहता है I प्रारंभिक गर्भाधान से लेकर पूर्ण शारीरिक और मानसिक परिपक्वता तक किसी भी चरण में मृत्यु हो सकती है; इसलिए 'आत्माओं' की कल्पना हमेशा की तरह विकसित होती रहनी चाहिए या हमेशा के लिए एक अपरिपक्व अवस्था में रहनी चाहिए।

तर्कशील व्यक्ति को आत्मा की धारणा को ठुकराने और यह स्वीकार करने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए कि मृत्यु हर मानव जीवन का स्वाभाविक अंत है। यह स्वीकार करते हुए कि जीवन केवल एक सीमित अवधि के लिए है, छोटा हो या लंबा, नास्तिक इस बात के बारे में सोचता है कि उपलब्ध समय कैसे खर्च करना सबसे अच्छा है I और इसलिए, अगर उपयुक्त रूप से उसे इस बात का ज्ञान है , तो सबसे अधिक संभावना इस बात की है कि एक इंसान अपना उपलब्ध समय सबसे अच्छे कार्यों में लगायेगा ।

एक तर्कशील व्यक्ति अपने समय को एक कल्पित ईश्वर की पूजा में खर्च करने या परम आनंद के कुछ पौराणिक अलौकिक दायरे में एक कपोल-कल्पित अस्तित्व-हीन जीवन के लिए तैयारी करने के बजाय इस जीवन से सम्बंधित बेहतर कार्यों में खर्च करेगा I

भगवान कमजोर व्यक्तियों के लिए एक बैसाखी है, जो वास्तविकता का सामना करने में असमर्थ हैं और जो हमेशा बच्चे बने रहना चाहते हैं। एक वयस्क मानव को इस झूठे समर्थन की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए I यदि हम अपने जीवन को उचित तरीके से जीना चाहते हैं, और यदि हम अपनी व्यक्तिगत और सामाजिक समस्याओं को ईमानदारी से हल करना चाहते हैं, तो पहली आवश्यक शर्त यह है कि हमें देखना चाहिए वे हमारी अपनी समस्याएं हैं, और हमें अपने भविष्य की पूरी जिम्मेदारी लेनी चाहिए I.. हमें यह अहसास करना होगा कि सामाजिक बुराइयां मानव-निर्मित हैं, उनका तथाकथित भगवान से कोई लेना-देना नहीं है I हमें यह भी जानना होगा कि कोई "ईश्वरीय न्याय" मौजूद नहीं है, और कोई भगवान हमारी समस्याओं को हल करने के लिए एक अवतार के रूप में नहीं आने वाला है, हमें अपनी समस्याओं को खुद हल करना होगा।

ईमानदारी इसी में है कि भगवान की झूठी बैसाखी के लिए भटकने के बजाय, इंसान अपने पैरों पर खड़ा हो; शुतुरमुर्ग की तरह वास्तविकता से दूर भागने के बजाय, वास्तविकता का सामना साहसपूर्वक और सीधे तौर पर करे ; अपनी जिम्मेदारी को 'ईश्वर' और 'भाग्य' पर टालने के बजाय, अपने फ़ैसले पूरी ज़िम्मेदारी के साथ ले ; और अपने कार्यों के हर तरह के परिणामों का निर्भीक तरीके से सामना करे I

आप चुनौतियों का सामना कैसे करेंगे ?

जब भी मानव जाति के सामने कोई बड़ी चुनौतियां आई हैं तो इसी प्रक्रिया के आधार पर उनका हल ढूंढ़ा गया है न कि किसी दैवीय या अलौकिक शक्ति के प्रभाव से l वर्तमान में पर्यावरण संबंधी तकनीकों का विकास इसका एक उदाहरण है l पर्यावरण को बचाने की मुहिम मानव जाति का अपना निर्णय है न कि किसी ईश्वर अथवा परमात्मा का आदेश l नास्तिक इस मूल तथ्य को पहचानते हैं कि कोई अलौकिक या दैवीय शक्ति मदद को आगे नहीं आएगी l जो भी समस्या होगी- उसका हल प्राकृतिक प्रक्रियाओं या लोगों के प्रयास और विवेक से किया जाएगा l हम मानते हैं कि जीवन एवं जीवन का वातावरण दोनों ही परिपूर्ण (परफेक्ट) या आदर्श (आइडियल) स्थिति में नहीं हैं l किन्तु अपूर्णता की यह जानकारी नास्तिकों को इसकी बेहतरी के लिए काम करने से निरुत्साहित नहीं करती l बल्कि, इसके विपरीत, इस अपूर्णता का ज्ञान उन्हें और अधिक प्रयास करने के लिए उत्साहित करता है और असफल होने पर उनकी निराशा को भी कम करता है l

नास्तिक लोगों में प्रेरणा कहाँ से आती है ?

नास्तिक इस मूल तथ्य को पहचानते हैं कि कोई अलौकिक शक्ति नहीं है जो चीज़ों को सुधारेगी। जहां भी और जब भी कोई समस्या होती है, तो इसे प्राकृतिक प्रक्रियाओं या लोगों के प्रयास और चातुर्य से ही हल किया जाएगा। धर्म का अभी भी ठगी और शोषण के लिए उपयोग किया जाता है। नास्तिकता उत्पीड़न के एक प्रमुख स्रोत को हटा देती है और इसी दुनिया में और इसी जीवन में एक बेहतर और पूर्ण जीवन के लिए आशा का महत्वपूर्ण तत्व प्रदान करती है। नास्तिकता अपने आप में एक लक्ष्य नहीं है, बल्कि एक ऐसा सुरक्षित आधार है, जहाँ से मानव जाति उन सभी बुराइयों पर प्रभावी हमले कर सकती है जो सभी मनुष्यों को अलग-अलग तरीके से बड़े पैमाने पर पीड़ित करती हैं। नास्तिकों को आम तौर पर धर्म के नाम पर खुद को धोखा देने वालों की तुलना में कहीं अधिक बेहतर तरीके से, उपलब्ध संसाधनों को पहचानकर, प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम पाया जाता है । धार्मिक लोगों की प्रेरणा बाहर से, जबकि नास्तिक के लिए प्रेरणा अपने अंदर से ही आती है ।

नास्तिक किस आधार पर यह दावा कर सकते हैं कि किसी के पास अलौकिक आत्मा नहीं है ?

सुपर-नैचुरल किसी भी चीज का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इस बात का कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है कि मानव जाति एक ईश्वर के द्वारा एक अनूठी रचना है। 'आत्मा ’की कोई विश्वसनीय परिभाषा नहीं है। वैज्ञानिक सबूत उन सभी अवधारणाओं को पूरी तरह से नष्ट कर देते हैं जो 'आत्मा' के अस्तित्व का आधार हैं।

जब चार्ल्स डार्विन ने अपनी उत्पत्ति का विवरण प्रकाशित किया तो धार्मिक निकायों ने महसूस किया कि सिद्धांत ने इस विश्वास को पूरी तरह से कम कर दिया कि मानव एक अद्वितीय रचना थी। धार्मिक लोग मानते थे कि होमो-सेपियन्स के अलावा सभी जीव 'आत्माओं' से रहित थे। यदि मानव प्राणियों के विकास की सीढ़ी पर केवल अगला कदम था, तो वे उस खास चरण को नामित करने के लिए बाध्य थे जिस पर एक मानव को 'आत्मा' प्रदान की गयी I उन्होंने महसूस किया कि ऐसी स्टेज ढूंढ पाना असंभव था और और इसलिए कट्टरपंथी आज तक मानव-जाति के क्रमिक विकास को अस्वीकार करते हैं।

धर्म का मूलभूत आधार और उद्देश्य क्या है ?

- धर्म, अपने वर्तमान स्वरूप में, मानव की खोज और तर्क का एक आदिम और पुराना नतीजा है जो मनुष्य के अपने इर्द-गिर्द के वातावरण, पर्यावरण, प्रकृति, अपने उदगम और उदभव, अपने सृष्टिकर्ता आदि के बारे में उठाये गए सवालों के जवाब में विकसित और पल्लवित हुआ है। इन सवालों के जवाब धर्म के सीमित दायरे में खोजने के लिए कोई अभी भी यह कह सकता है कि यह आज भी स्वीकार्य है लेकिन इसे सार्वभौम बनाने और इसके द्वारा जीवन के हर क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए अधिकार देने पर धर्म एक वरदान के बजाय एक अभिशाप बन जाता है। धर्म मानव के मन और संसाधनों को नियंत्रित करने के लिए सबसे अच्छा हथियार है। अतीत में लोगों ने इसका उपयोग आमूल-चूल परिवर्तन लाने के लिए किया था, उन्होंने इसे आवश्यक समझा, ताकि सभ्यता को अगले स्तर पर ले जाया जा सके, या लोगों को एकजुट किया जा सके, या कुछ अवरोधक रीति-रिवाजों को दूर किया जा सके, या सत्ता और नियंत्रण हासिल किया जा सके। अपने इन नैतिक और सकारात्मक उद्देश्यों में धर्म कितना सफल रहा - इसका उत्तर बहुत निराशाजनक है। कुछ समय बाद सभी धर्म मानव प्रगति में बाधक बन जाते रहे और बदलाव का विरोध करते रहे ताकि कुछ लोगों की सत्ता बरक़रार रह सके I

नास्तिक लोग मुसीबतों का सामना कैसे करते हैं ?

एक प्रारंभिक बिंदु के रूप में यह ध्यान देने योग्य है कि धार्मिक लोग संकट,आघात और दिन-प्रतिदिन की समस्याओं से कैसे निपटते हैं, जिनका जीवन में सभी को सामना करना पड़ता है l

ईसाई मत यह है कि हर जीवन सुनियोजित है, और चाहे जो भी हो - "सभी चीजें अच्छे के लिए मिलकर काम करती हैं"। यदि यहाँ जीवन दयनीय और कष्टप्रद है तो यह गौण महत्व का है l क्योंकि यह केवल शाश्वत स्वर्गीय आनंद के जीवन की एक प्रस्तावना या तैयारी मात्र है।

कुछ संप्रदाय हैं जो युद्ध, विपत्तियों , भूकंप और अन्य आपदाओं में रहस्योद्घाटन के रूप में मसीहा की वापसी की खुशखबरी की कल्पना करते हैं, जब अविश्वासियों (नास्तिकों) को जल्दी तुरंत परिवर्तित किया जाएगा या तलवार से काट दिया जाएगा। इसे 'परमानन्द का दिन' के रूप में देखा जाता है।

कुछ पूर्वी धर्म ईश्वरीय नियोजन के विचार को उसके तार्किक अंत तक ले जाते हैं और मानते हैं कि सब कुछ पूर्व-निर्धारित है और इसलिए, अपने हालात को या सारी दुनिया को सामान्य रूप से सुधारने के लिए संघर्ष करना बेकार है। हालांकि, अधिकांश धर्म इस बात पर जोर देते हैं कि पृथ्वी पर अच्छे काम करने के बाद अच्छे इनाम मिलेंगे I इसलिए धर्म द्वारा दी गयी कल्पनाओं को अच्छे काम करने के लिए एक प्रोत्साहन माना जाता है। यह मूल रूप से एक स्वार्थी प्रेरणा है। ईसाई अक्सर यह दावा करते हैं कि धर्म जीवन को अर्थ देता है और इसलिए नास्तिक का जीवन निरर्थक है। यह एक तथ्य है कि धर्म भक्तों के जीवन और दृष्टिकोण को बदल सकता है लेकिन यह बहुत बहस का विषय है कि आम तौर पर ये बदलाव बेहतरी के लिए होते हैं या नहीं l अल्कोहोलिक अनोनिमस (Alcoholics Anonymous) संगठन, जो ईसाई धर्म पर आधारित है, सफलता का एक उदाहरण है I लेकिन ऐसे बहुत से अन्य सफल संगठन भी हैं जो किसी धार्मिक आधार पर नहीं बने हैं l

ईसाई अपने ईश्वर से अपेक्षा करते हैं कि जो कुछ भी गलत है उसे ठीक करे ("मांगें और यह दिया जाएगा") l लेकिन यह किस प्रकार का सर्वोच्च प्राणी है जिसे क्षुद्र प्राणियों से आराधना और पूजा की आवश्यकता होती है ? धर्म का उपयोग एक बैसाखी के रूप में किया जाता है और इसलिए मानव के अपने प्रयासों से या दोस्तों की मदद से जीवन के दुष्चक्र से ऊपर उठने के लिए मानव की प्रेरणा को नष्ट कर देता है l इसके विपरीत नास्तिक लोग स्वयं या दूसरों की मदद से प्रयास करते रहते हैं l

नास्तिक के दर्शन में ज्ञान एक प्रमुख तत्व है जो यह पहचानता है कि मनुष्य ने जो भी उन्नति की है वह एक समस्या की सही पहचान और फिर उसका एक पर्याप्त समाधान खोजने के लिए संघर्ष करने से हुई है। यह आज के तकनीकी विकास के लिए जिम्मेदार एक सतत प्रक्रिया है, जिसका एक नवीनतम उदाहरण है - ग्रीनहाउस इफ़ेक्ट (Greenhouse Effect)।

अधिकांश लोग किसी न किसी धर्म को क्यों मानते हैं ?

- धर्म मानव सभ्यता और संस्कृति का एक अटूट अंग बन गया है I हिंदू का बच्चा हिंदू, मुसलमान का मुसलमान, ईसाई का इसाई और सिख का सिख बना दिया जाता है I धर्म मुख्य रूप से इसीलिए मौजूद है l बच्चों को उनके माता-पिता या अभिभावकों द्वारा शुरू से ही इस रूप में ढाल दिया जाता है l स्थानीय संस्कृति और समाज भी इसमें अपनी भूमिका अदा करते हैं l यह ब्रेन-वाशिंग पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है, क्योंकि कोई भी यह सोचने और आकलन करने के लिए नहीं रुकता कि बच्चों को क्या हस्तांतरित किया जा रहा है l यह बाल-शोषण (चाइल्ड एब्यूज) है l बच्चों को कुछ समझ पाने से पहले ही एक धर्म में एक धर्म में धकेल दिया जाता है और इस लायक नहीं छोड़ा जाता कि वे बड़े होकर, समझदार होने पर, सोच-विचार कर यह फैसला करें कि उन्हें कि उन्हें कोई धर्म चाहिए भी या नहीं l

क्या नास्तिकों को ईश्वर (भगवान) के न होने का सबूत नहीं देना चाहिए ?

- जो लोग परियों , फ़रिश्तों और देवताओं के होने की बात करते हैं , उन्हें इसके समर्थन में सबूत देने चाहियें l ये सबूत हर व्यक्ति को स्वीकार्य (मान्य) होने चाहियें ,न कि केवल एक विशेष धर्म मानने वालों को ही l यदि पिछले ५-६,००० वर्षों में २०,००० धर्म पैदा हुए हैं तो उन सभी ने यह दावा किया है कि केवल वे ही सच्चे हैं और बाकी के १९,९९९ झुठे l नास्तिक लोग केवल एक धर्म का इज़ाफ़ा कर देते हैं और कहते हैं कि सभी २०,००० धर्म मनगढ़ंत और झूठे हैं l

नास्तिकों से यह आशा करना कि वे परमात्मा या ईश्वर के न होने का प्रमाण (सबूत) दें , बेवकूफ़ी की पराकाष्ठा है l आस्तिक या धार्मिक लोग खुद तो आज तक अपनी कल्पनाओं और पूर्व-धारणाओं का कोई सबूत पेश कर नहीं सके और जो चीज़ है ही नहीं, उसके न होने का सबूत (प्रमाण) मांग रहे हैं l

क्या नास्तिक लोग सुप्रीम बीइंग , परम-सत्ता या परम-आत्मा (परमात्मा) में विश्वास करते हैं ?

- यह कोई मुद्दा ही नहीं है कि नास्तिक परमात्मा या परम-सत्ता में यकीन करते हैं या नहीं l असलियत तो यह है की इस प्रकार की सत्ता या वस्तु का कोई भी प्रमाण नहीं है l सिर्फ़ इसलिए कि परमात्मा का विचार मनुष्यों के मन में बार-बार उठता है , यह उसके वास्तव में होने का प्रमाण तो कतई नहीं हो जाता l उसी प्रकार से, जैसे कि परियों के होने का विचार उन्हें वास्तविक नहीं बना देता l

क्या नास्तिक मृत्यु के बाद पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं ?

- करोड़ों -अरबों जीवों में से , चाहे मानव हो या अन्य , किसी के भी मृत्यु के बाद पुनर्जन्म के प्रमाण नहीं हैं l किसी भी मानव ने इस बात का वैज्ञानिक सबूत पेश नहीं किया है l दिल के बहलाने को या अवसाद (डिप्रेशन) से बचने के लिए इस प्रकार के तसल्ली (सांत्वना) देने वाले विचार या अवधारणा का तात्पर्य स्पष्ट है l अविनाशी (शाश्वत) जीवन की इच्छा मानव में हमेशा से रही है l यह इच्छा-मात्र के आलावा कुछ नहीं है l धार्मिक लोग मनुष्य की इस कमजोरी का फायदा उठाते हैं l

क्या आप लोगों का धर्मान्तरण कर रहे हैं ?

- बिलकुल नहीं l हम मानते हैं कि लोगों को इस बात की आज़ादी होनी चाहिए की वे कैसे रहना चाहते हैं l हम उन्हें बताना चाहते हैं कि धर्म के बिना भी अच्छी तरह रहा जा सकता है l हम नास्तिकों व धर्म-विहीन लोगों के प्रति समाज में फैली ग़लतफ़हमियों एवं पूर्वाग्रहों को दूर करना चाहते हैं l हम इस झूठ को मिटाना चाहते हैं कि ईश्वर या धर्म के बिना जीवन एकाकी एवं उद्देश्य-विहीन हो जायेगा l इसके विपरीत , हम यह बताना चाहते हैं कि ईश्वर एवं धर्म से मुक्त जीवन अधिक सार्थक एवं उद्देश्यपूर्ण बन सकता है l

नास्तिक लोग संकटों का सामना कैसे करते हैं ?

- अधिकतर धर्म यह मानते हैं कि जीवन में हर घटना पहले से तय होती है, और यह भी कि अंत में सब भले के लिए ही होता है l यदि यहां पर कष्ट है भी तो कोई बात नहीं, अंत में स्वर्ग की प्राप्ति की संभावना है - जहां सदा के लिए आनंद होगा l बहुत से धर्म, भूचाल, युद्ध और प्लेग आदि को ईश्वर का कोप मानते हैं ,और कुछ तो नास्तिकों और दूसरे धर्मावलंबियों को तलवार के जोर पर अपने मत में ढालना चाहते हैं l कुछ धर्म भाग्य में विश्वास करते हैं और इस जीवन की परिस्थितियों को बदलने के प्रयासों को बेमानी समझते हैं l कुछ भी हो अधिकांश धर्म यह मानते हैं कि इस जीवन में किए गए अच्छे कामों का फल मृत्यु के पश्चात परलोक में मिलेगा और वे इसी को अच्छे काम-काज करते रहने की प्रेरणा मानते हैं l वे यह भी मानते हैं कि धर्म ही जीवन को एक अर्थ या उद्देश्य प्रदान करता है l

धर्म को एक बैसाखी की तरह इस्तेमाल किया जाता है l धर्मों द्वारा मनुष्य को इस जीवन की समस्याओं का स्वयं के तथा दोस्तों की मदद से संभव प्रयासों द्वारा बेहतर तरीके से सामना करने से निरुत्साहित किया जाता है l इसके विपरीत नास्तिक लोग ज्ञान को अधिक महत्व देते हैं l वे मानते हैं कि जो भी प्रगति हुई है - वह समस्या की पहचान और उसके समाधान खोजने की प्रक्रिया के जरिए हुई है l यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है l

आप यह कैसे तय करते हैं कि क्या सही है और क्या गलत ? आप कैसे जानेंगे कि आपको एक अच्छा इंसान बनना है ?

- क्या यह जानने के लिए भी किसी ईश्वरीय आदेश कि आवश्यकता है कि दूसरों को तकलीफ़ नहीं पहुंचानी चाहिए ? नहीं , अधिकांश संस्कृतियों में मूल नैतिक नियम लगभग समान होते हैं l ये समाजों के दीर्घकालिक अनुभव पर आधारित होते हैं l

हम जानते हैं कि हम अपने आप दयालु और संवेदनशील होने का फैसला कर सकते हैं l ये मूल्य अधिकांश प्राणियों में अन्तर्निहित हैं l किसी के द्वारा करुणा एवं संवेदना दिखाने पर दूसरे भी बदले में प्रायः ऐसा ही करते हैं l हमें इस दुनिया को हर व्यक्ति के लिए एक बेहतर स्थान बनाने की अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास स्वाभाविक रूप से होता है l जो मसले जटिल होते हैं - ख़ास तौर पर लोक-नीति अथवा सामाजिक व्यवस्था - उनके लिए विज्ञान, तर्क एवं विवेक-बुद्धि हमारा मार्गदर्शन करते हैं l हम विभिन्न व्यवहारों और विकल्पों का अध्ययन करते हैं और तथ्यों तथा आंकड़ों की सहायता से पता करते हैं की कौन से कृत्य हानिकारक हैं और कौन से लाभदायक l हम वास्तविक दुनिया के अनुभवों के आधार पर सही या गलत का निर्णय करते हैं, न कि किसी परंपरा या किसी काल्पनिक भगवान की इच्छा के अनुसार l

क्या नास्तिकता निराशावाद को जन्म देती है ?

- नास्तिक लोग अधिक आशावादी होते हैं क्योंकि उन्हें किसी बहरी या दैवीय शक्ति का इंतज़ार नहीं होता l वे आशा करते हैं कि मानव के प्रयास से हमारी दुनिया बेहतर हो सकती है, विश्व में शांति हो सकती है, सबको न्याय मिल सकता है और गरीबी समाप्त की जा सकती है l नास्तिक मानते हैं कि हमारे पास जीवन के आनंद लेने का अवसर यहीं पर है और अभी इसी जन्म में है, किसी स्वर्ग-नरक की आवश्यकता नहीं है l

नास्तिकता क्यों ज़रूरी है ?

हमें समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं तर्कशील ( विवेकपूर्ण) सोच स्थापित करनी चाहिए l धर्म, मज़हब, संप्रदाय, धार्मिक विश्वास, आत्मा , अलौकिक या दैवीय शक्तियां , स्वर्ग-नरक अदि सभी बिना सबूत वाले वे गप्प हैं जिन्हें बचपन से ही दिमाग में भर दिया जाता है l इनकी तार्किक एवं आलोचनात्मक जाँच आवश्यक है l यदि इन अंधविश्वासों को बचपन से ही बच्चों के दिमाग में न भरा जाये तो दो-तीन पीढ़ी बाद ही यह विश्व एक अधिक सुरक्षित स्थान बन जायेगा l बच्चों के दिमाग में जबर्दस्ती धर्म के अवैज्ञानिक विश्वासों का भरा जाना दुनिया का सबसे बड़ा बाल-उत्पीड़न (चाइल्ड एब्यूज) है l सच तो यह है कि कोई भी संगठित धर्म तर्क एवं वैज्ञानिक जाँच के सामने टिक नहीं पता l अधिकतर धर्म जोर - जबरदस्ती और अन्धविश्वास के आधार पर ही जिन्दा हैं l अधिकांश धर्म समालोचना और समीक्षा नहीं सहन करते और अनेक देशों में ईश निंदा (ब्लासफेमी) के क़ानून बना दिए गए हैं ताकि किसी भी आलोचना या विरोध की गुंजाइश न रहे l अनेक देशों में तो धर्म या ईश्वर के विरुद्ध आवाज़ उठाने वालों को मृत्यदंड दिया जाता है l

बिना धर्म के आप इस अर्थहीन और उद्देश्य-हीन विश्व में जीवन का अर्थ और उद्देश्य कैसे ढूंढते हैं ?

- हम अपने जीवन को स्वयं अर्थ प्रदान करते हैं और अपने जीवन का उद्देश्य ढूंढने के लिए आजाद हैं l हम इस बात को खुद तय करते हैं कि इस सुंदर ग्रह पर हम अपने सीमित समय का कैसे उपयोग करें l उदाहरण के लिए हम अपने परिवारों और दोस्तों से जुड़े हैं यहां तक कि हम संचार के नए साधनों द्वारा ऐसे लोगों से भी बातचीत करते हैं जिनसे हम वास्तविक जीवन में कभी नहीं मिले हैं ; पर हमारे मूल्यों और आदर्शों में समानता है या, हमारी एक सी रुचियाँ हैं l इस प्रकार के सभी संबंध हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करते हैं l हम यहां पर किसी दैविक, सार्वभौमिक या विशेष उद्देश्य के लिए नहीं भेजे गए हैं l हम यहां पर हैं और यही काफी है l क्योंकि इसी कारण यह संभव होता है कि हम अपने जीवन में क्या करना चाहते हैं l हमें यह तय करने का अवसर मिलता है कि हमारे जीवन का क्या उद्देश्य हो l यह प्रक्रिया अपने आप में बहुत अर्थपूर्ण और उद्देश्य-पूर्ण है l

क्या नास्तिक धार्मिक लोगों से घृणा करते हैं ?

- नास्तिक लोग किसी से सिर्फ इसी कारण घृणा नहीं करते हैं कि वे आस्तिक हैं l इसके विपरीत वे धार्मिकों पर तरस खाते हैं कि वे अज्ञानता से ग्रस्त हैं l घृणा तो आम तौर पर धार्मिक लोगों में पाई जाती है जो उनके द्वारा अपने आपको दूसरों से श्रेष्ठ एवं ऊंचे दर्ज़े का मानने के कारण होती है l साथ ही धर्म उन्हें काल्पनिक कहानियों तथा परम्पराओं के ज़रिये कट्टर और अंध - भक्त बनता है l बहुत से धर्म अपने अनुयायियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करते हैं कि वे दूसरों को भी अपने मत में लाएं या उनका धर्मान्तरण अदि करें l कुछ देशमें तो नास्तिकों के लिए मृत्यदंड का प्रावधान है l अनेक देशों में दुसरे धर्म के मानने वालों के साथ दोयम दर्ज़े का व्यवहार होता है l

नास्तिक लोग सभी धर्मों के विरुद्ध होते हैं , किन्तु उनका तरीका मानवीय होता है l वे स्कूलों में धार्मिक शिक्षा का विरोध करते करते हैं l बच्चों को धार्मिक शिक्षा को वे बाल -शोषण (चाइल्ड एब्यूज ) कि संज्ञा देते हैं l नास्तिक यह मानते हैं कि यदि कोई व्यक्ति धार्मिक बनना भी चाहता है तो उसे बचपन में ही किसी धर्म से जबरदस्ती बांध देने के बजाय उचित होगा कि बड़े होने पर उसे सभी धर्मों का अध्ययन करने का अवसर मिले जिससे वह अपने विवेक से कोई भी धर्म चुन सके l

क्या नास्तिकता भी एक अलग धर्म है ?

नहीं l धर्म एक अलौकिक क्षेत्र की ओर इंगित करते हैं जो कि ईश्वर या दैवीय शक्तियों द्वारा नियंत्रित किया जाता है l धार्मिक मान्यताएं एवं विचार पीढ़ी-दर-पीढ़ी श्रुति या लिखित पुस्तकों के माध्यम से हस्तांतरित किये जाते हैं, जिनके मूल में यह घोषणा होती है कि यह एक महानतम (अलौकिक ) शक्ति या परम आत्मा (सुप्रीम-बीइंग) कि इच्छा है l

नास्तिकों के लिए ऐसी कोई श्रुतियाँ , इल्हाम या रेवेलशन (प्राकट्य), ईश्वर या देवता नहीं होते और न ही वे अलौकिक शक्तियों, सार्वभौम सर्वशक्तिमान वस्तु अथवा विचार में यकीन करते हैं क्योंकि ऐसा करने के लिए कोई सबूत नहीं हैं l अतः नास्तिकता प्रकृति का विवेकपूर्ण मूल्यांकन है, जबकि धर्म एक काल्पनिक अनुमान का परिमाण है l उच्चतर किस्म के प्राणियों- जिनमें मनुष्य उच्चतम है , में लगातार संवेदना , हमदर्दी , परानुभूति , और करुणा के गन विकसित हुए हैं जो कि उनके जीवित रहने और विकसित होने के लिए लाभकारी हैं l हमारी बौद्धिक क्षमता निरंतर परिस्थितियों के अनुसार इन्हें परिष्कृत करती रहती है l

इस विषय में हमें ये दो प्र्श्न अपने आप से पूछने चाहियें :

(१) वे कौनसे धार्मिक नियम हैं जो कि मानव द्वारा नहीं बनाये गए या मानव द्वार नहीं बनाये जा सकते थे ?

(२) यदि आपको इस बात का समुचित प्रमाण मिल जाये कि भगवान नहीं है, तो क्या आप अचानक एक अनैतिक व्यक्ति बन जायेंगे ?

नास्तिकता क्या है ?

- नास्तिकता की बहुत सी परभाषाएँ हैं I सबसे अधिक मान्य परिभाषा के अनुसार - " नास्तिकता इस बात का स्वीकार किया जाना है कि ईश्वर, देवी-देवताओं, या अलौकिकता का कोई विश्वसनीय, वैज्ञानिक या तथ्यपरक साक्ष्य (सबूत) नहीं है l