Thu Apr 06 2023,05:36 PM

जीवन का उद्देश्य

जीवन का उद्देश्य

अधिकांश लोग इसी भूल-भुलैया में पड़े रहते हैं कि इस जीवन का क्या अर्थ है और इसका क्या उद्देश्य होना चाहिए l यह एक बहुत ही जटिल एवं व्यक्तिगत विषय है और इसका उत्तर व्यक्ति के व्यक्तित्व और परिवेश के अनुसार बदलता रहता है l किसी व्यक्ति के लिए जीवन का अर्थ एवं उद्देश्य प्रायः परिवार, धर्म, समाज, संस्कृति एवं राजनीतिक विचारधारा आदि पर निर्भर करता है l यहां तक कि कुछ धर्म या राजनीतिक विचारधाराएं तो कहती हैं कि मानव किसी विशेष उद्देश्य के लिए अस्तित्व में आया है, या उसके जीवन का खास मकसद है l

कुछ लोगों के लिए जीवन का अर्थ और उद्देश्य एक अच्छा करियर, परिवार का पोषण और भावी पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित करना होता है l उनमें से अधिकांश लोग इसी को जीवन मरण का प्रश्न बना लेते हैं और जीवन भर इसी उद्देश्य के लिए संघर्षरत रहते हैं l यह कोई बुरा उद्देश्य तो नहीं है, पर इस चक्कर में बड़े परिवार खड़े करना कोई महान कार्य नहीं है l क्योंकि यह पृथ्वी पहले से ही आवश्यकता से बहुत अधिक आबादी का बोझ सह रही है l यदि हम अति-धार्मिक लोगों की बात करें तो वे विश्वास करते हैं कि जीवन का एक अंतर्निहित अर्थ और उद्देश्य है l ईश्वर और धर्म उनके जीवन को एक अर्थ प्रदान करते हैं तथा साथ ही मनोवैज्ञानिक सहारा भी प्रदान करते हैं l परिणाम-स्वरूप वह सांस्कृतिक संदर्भ में ही जीवन का अर्थ ढूंढते हैं और अपने धार्मिक विश्वासों के अनुसार ही जीवन व्यतीत करने में विश्वास रखते हैं l वैसे तो जीवन में कोई अर्थ या उद्देश्य ढूंढ़ना कोई बुरी बात नहीं है, परंतु धर्मों के नेता मानव की इस प्रवृत्ति का इस्तेमाल कर कट्टरता और अंधविश्वास पैदा करते हैं l इसी प्रकार राजनीतिक नेता अति-राष्ट्रवाद कि भावना पैदा करके अपने स्वार्थ सिद्ध करते हैं l इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण है l वे लोग, जो मजबूत विचारधाराएं अपनाते हैं, आखिर में यह विश्वास करने लगते हैं कि उनके जीवन का एक मुख्य उद्देश्य उस विचारधारा को दूसरों पर थोपना भी है ताकि सभी लोग एक सा सोचने लगें और एक ही तरह से रहने लगें l इसी तरह मजबूत विचारधाराएं पनपती हैं l

इन काल्पनिक दर्शनों या विचारधाराओं को दूसरों पर थोपने की प्रक्रिया ही इन दर्शनों या विचारधाराओं के जीवित रहने या उनके प्रसार का मुख्य कारण बनती है l बहुत से रूढ़िवादी और दकियानूसी विचार विश्व की अधिकतर समस्याओं की वजह बन गए हैं, मानव समाज को बाँट रहे हैं और आतंकवाद को भी बढ़ावा दे रहे हैं l इन सब के विपरीत, धर्मनिरपेक्ष एवं तर्कशील लोग जीवन के परंपरागत अर्थ को नकारते हुए यह मानते हैं कि जीवन का कोई प्राकृतिक तात्विक या अंतर्भूत अर्थ नहीं है l वे यह मानते हैं कि उन्हें स्वयं इसे एक अर्थ और उद्देश्य प्रदान करना होगा l दार्शनिक ज्यां पॉल सार्त्र के अनुसार जीवन का कोई मूलभूत या अंतर्भूत (ा प्रायोरी) अर्थ नहीं है l अर्थात, अस्तित्व में आने से पहले इसका कोई अर्थ अथवा प्रारूप नहीं था l जीवन का उद्देश्य मानव को स्वयं तय करना होता है l धर्मों में भी आखिरकार कुछ लोगों ने ही सारे नियम-कायदे बनाये हैं l कोई भी किताब आस्मानी या तथाकथित ईश्वर के द्वारा बनाई गयी नहीं है l नास्तिकों या मानवता-वादियों के लिए ईश्वर या धर्म जीवन को अर्थ या उद्देश्य प्रदान नहीं करते हैं l उनकी आध्यात्मिकता धर्मशास्त्र या दिव्यता के बजाय मानवता पर आधारित होती है l नास्तिक या मानवतावादी लोग प्रकृति में उपलब्ध संसाधनों की मदद से जीवन के रोमांच एवं खुशियों का आनंद उठाते हैं l उनके लिए साहित्य, कला, संगीत, सौहार्द्र परस्पर संबंध एवं मानवता की सेवा आदि एक अर्थ-पूर्ण और आनंद-दायक (ख़ुशगवार) जीवन जीने के लिए काफ़ी हैं l उन्हें किसी दिव्य-शक्ति या आसमानी किताब की आवश्यकता नहीं होती l वह अपनी निजी प्रतिभाओं एवं रुचियों को भी विकसित करते हैं और उन से लाभान्वित होते हैं l

ऐसा नहीं है कि नास्तिक या तर्कशील लोगों के आदर्श नहीं होते हैं l वे विभिन्न विचारों और विकल्पों की समालोचनात्मक एवं विवेकशील ढंग से जांच कर एक सही निर्णय पर पहुंचते हैं तथा विचारों का एक ऐसा मिश्रण तैयार करते हैं जो कि उनके जीवन को एक अच्छी तरह से अर्थ और उद्देश्य प्रदान करे और उनका मार्गदर्शन करे l यह प्रक्रिया जीवन को एक बेहतर एवं वास्तविक उद्देश्य प्रदान करती है न कि कोई एक अकेली या संकीर्ण विचारधारा l यह प्रक्रिया मानव समुदायों को अपने निहित स्वार्थों और संकुचित मानसिकताओं से ऊपर उठाकर संपूर्ण मानव-जाति में सौहार्द्र पैदा कर सकती है l इससे न केवल विभिन्न विचारधाराओं और मतों में अंतर कम होगा, इससे जीवन की गुणवत्ता भी बढ़ेगी l मानव विकास के अगले पायदान पर पहुंच कर एक न्याय-परक एवं शांतिपूर्ण विश्व बनाने की अत्यंत आवश्यकता है जो कि आधुनिक एवं विवेकशील मानव मूल्यों द्वारा ही संभव है l हमें इस विश्व को उससे एक बेहतर स्थान बनाना है जैसा कि हमें अपने पूर्वजों से विरासत में मिला है l इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि हम अपने अंदर परिवर्तन लाएं तथा इस ग्रह पर मानव-संसाधनों की गुणवत्ता को बढ़ाएं, जो कि तभी संभव है जबकि विवेकशीलता, तर्कशीलता एवं वैज्ञानिक सोच को विकसित किया जाए l हमें सुनिश्चित करना होगा कि हमारे बाद आने वाली पीढ़ियां इस मानव समाज को, इस पृथ्वी के संसाधनों को हमसे बेहतर, अधिक विकसित, संरक्षित और अधिक समान रूप से वितरित पाएं l नास्तिक एवं मानवतावादी लोग विकास के संदर्भ में व्यक्ति को एक इकाई मान कर चलते हैं न कि एक परिवार, कबीले, जाति, कुल, वर्ग, एक खास समुदाय अथवा राष्ट्र को l इसके साथ ही, हमारे विस्तृत परिवार की अवधारणा न केवल मानव-प्रजाति, अपितु इस ग्रह पर रह रहे सभी प्राणियों को, और उससे भी बढ़कर, यदि अन्य ग्रहों पर कोई प्राणी हैं - उन्हें भी अपना ही एक हिस्सा मानती है l आखिरकार हम इस विशाल ब्रह्माण्ड का एक बहुत छोटा सा हिस्सा हैं और यह ब्रह्माण्ड हमारे लिए नहीं बनाया गया है - हम तो मानो सिर्फ़ एक मेहमान हैं l